Monday, 19 October 2015

                                         उठ  जाग जा  !!!!!
क्या हुआ उस चाह को।
जिनको लगे थे पर।
क्यों दिख रहे वो तितर बितर।
वक़्त के इन झोकों ने कैसे कमजोर हो गयी |
उस बेपरवाह पंछी की उडान कैसे डगमगा गई।
उसकी चाह के आड़े आ गयी।

उठ जाग जा।।।।।।।।।

मत डर ।।।।
कल की परवाह मत कर।
तेरे जीतने या हारने से ज्यादा जरुरी कोोशिश  है।
वरना तेरी सपनो की ऊँचाई बहुत थोड़ी है।
शायद उनमे सच्चई अभी अधूरी है।

जो थक जाये तू उड़ान में अपनी।
तो मेहसुस करना वो सपनो की जीत को।
थकान भी थक थक जायेगा। पास आने से तेरे।
वो खुद पे शर्मिदा हो जायेगा।छु जाने से तेरे।
जो खुद पे कभी शंका लगे।
तू निहारना दर्पण।
शंका भी कर देगी आत्म समर्पण।

उठ जाग जा।।।।।।।।।

वक़्त के थपेड़े भी जो तुझे सतायेंगे।
तू  मुस्कान रखना धईर्या की।
सब मुश्किलो के हल तुझे मिल जायँगे।
जो कोई कोशिश करे हिलाने की तुम्हारी चाह।।
तुम कुछ सोचना ना बस उड़ते रहना बेपरवाह।।
छीतीज खुद छूने चला आएगा तुम्हे।
अंधकार में भी राह दिखलायेगा तुम्हे।

तो उठ जाग जा।

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