Thursday, 31 December 2015


                               

                               Happy Happy New Year 2016




 Tan ta tan... Happy new year....2016                 

 Wow !! Again a new year to unwrap a lot of opportunities, to do a lot of adventure to discover our self  to make new thing to learn new things . Thank you god to give  me and all a lot of opportunity to again stand and to do our duty happily, successfully and achieve our dreams which are still incomplete.





  Wish we all will work hard to erase our mistakes and with a new and strong dedication will take an oath to fulfill our goals.





We will edit and modify our way of thinking if we are wrong we will happily accept our mistakes and will do best as we can. We will paint our new year which will be the best year .



This new year painting will be the best ever. 






 Life will be like we live in dreams whatever we want will get there will lots of happiness joys and pleasant surprise gifts will be there







Wish you all wonderful  exciting and bindass Happy new year..






Thursday, 22 October 2015



                                               दुर्गा पूजा की शुभकामनाये सभी को।।

 बचपन में नए कपडे पहनने की उत्सुकता।
याद है |

मंदिर की लाइन में घण्टो लग कर भी
बिना परेशां हुए माँ के साथ अपनी बारी का इंतज़ार करना।
याद है।

पुरे मंदिर के प्रांगण में माँ के पीछे पीछे घूमना
याद है।


आरती करने के बाद माँ के आँचल से आशीष लेना।
याद है।

दुर्गा माँ की ढेर सारी मूर्ति देखने की इच्छा
याद है।

फिर पापा के साथ भी उन्ही मूर्तियो को दोहराना
याद है।

पापा के कंधे पे बैठे मुर्तिया निहारना
याद है|


मेले में मिट्टी की मूर्ति खरीदना
याद है।

मां के मना करने पर उन बातो के लिए रो जाना
याद है।

पुरे मेले में एक ग़ुबारे के लिए शोर मचाना आँखों में आँसु भर आना।
याद है।


बैठे बैठे शाम का इंतज़ार करना
याद है।

वो गुझिया मिठाई की खुशबू और गुलाबजामुन का स्वाद
याद है |



हर मंदिर में जा कर तिलक लगवाना।
याद है।

मेले में झूले पे चढ़ना और हवा से बातें करना भी
याद है।


नवमी के दिन कन्या कुवारी बनना ।
याद है।

पंडाल में लुका लुकाछिपी खेलना
याद है|

दशहरा के दिन रावण वध ,पटाखों की गुंज भी
याद है।


फिर मूर्ति विसर्जन , माँ का चले जाना  भी 
याद है|


दुर्गा पूजा की चहल पहल का याद आना 
याद है|

सारी मज़ा मस्ती के लिए अगले साल फर से पूजा आयेगी ये सोच के मुस्काना 
याद है|


वो यादें ही है जो काफी है आज ऑफिस में रह क़र भी पूजा की उमंगे भर देती है।

कल्पनाओ में फिर वही पूजा ,वही माँ, वही आँचल ,वही झूले, वही मंदिर वही मूर्ति, वही बचपन, वही भोला मन।
सब वही तो है।


दुर्गा पूजा की शुभकामनाये सभी को।।




Monday, 19 October 2015

                                         उठ  जाग जा  !!!!!
क्या हुआ उस चाह को।
जिनको लगे थे पर।
क्यों दिख रहे वो तितर बितर।
वक़्त के इन झोकों ने कैसे कमजोर हो गयी |
उस बेपरवाह पंछी की उडान कैसे डगमगा गई।
उसकी चाह के आड़े आ गयी।

उठ जाग जा।।।।।।।।।

मत डर ।।।।
कल की परवाह मत कर।
तेरे जीतने या हारने से ज्यादा जरुरी कोोशिश  है।
वरना तेरी सपनो की ऊँचाई बहुत थोड़ी है।
शायद उनमे सच्चई अभी अधूरी है।

जो थक जाये तू उड़ान में अपनी।
तो मेहसुस करना वो सपनो की जीत को।
थकान भी थक थक जायेगा। पास आने से तेरे।
वो खुद पे शर्मिदा हो जायेगा।छु जाने से तेरे।
जो खुद पे कभी शंका लगे।
तू निहारना दर्पण।
शंका भी कर देगी आत्म समर्पण।

उठ जाग जा।।।।।।।।।

वक़्त के थपेड़े भी जो तुझे सतायेंगे।
तू  मुस्कान रखना धईर्या की।
सब मुश्किलो के हल तुझे मिल जायँगे।
जो कोई कोशिश करे हिलाने की तुम्हारी चाह।।
तुम कुछ सोचना ना बस उड़ते रहना बेपरवाह।।
छीतीज खुद छूने चला आएगा तुम्हे।
अंधकार में भी राह दिखलायेगा तुम्हे।

तो उठ जाग जा।


   



किस बात की तकलीफ किस बात का प्यार

सब अपनी मर्ज़ी के मालिक है।मेरी क्या दरकार।

सौ अश्क़ बहा भी लूँ तो क्या हुआ||

क्यारी के फूल मुरझाये तो क्या हुआ

फूलो को मुरझाना है वो मुरझाना ह तो मुरझेंगे

आँखों को तकलीफ मिटाना है तो रो जायँगे

जीवन की कशमकश कभी हसएगी कभी रुलाएगी

कभी आँखे भरेंगी दुःख से कभी ख़ुशी क आंसू बहायेगी

किसी को रोकना आसान नही है जीवन  में

ये तो सागर की लहरे और रेत सी होती .है

रेत ठहर जाती है,और लहरे वापिस लौट जाती

Saturday, 7 March 2015

Happy Women's Day :) :)

Hats off to all women who dare to to walk in open air with their dreams ..:)

महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देनी तो  है मगर आज बस हम इसे मना कर क्या हासिल कर लेंगे??
ये आज क दिन हमारी सरकार कुछ जगहों पे रंगारंग कार्यक्रम आयोजित करेगी..कुछ जगहों पे नारी को सम्मान दो के  नारे लगाये जायंगे,कुछ जगहों पे अपने देश की महान महिला हस्तियों को याद किया जायेगा,
और फिर कुछ भी नही बदलेगा न देश न समाज की सोच,और फिर  मरेगी कही कोई लड़की निर्भया की मौत.उसकी सिसकियो को विवाद बना जायेगा और फिर ऐसी वाहियात टिपण्णी होगी. जिसको कहते वक़्त इन्सान की रूह भी नही कापती.जो खुद अंश है किसी महिला का.....
और दुःख तो इस बात का है . की कहने तो ये समाज के महान बुद्धिजीवी वर्ग में आते है.पर मुझे तो नही लगता की ये इन्सान क वर्ग में भी आने की काबिलियत रखते है..
अब उदहारण आप ही देख लीजिये..ये है महान उपासक कृष्ण भक्त.. जिनके कई इस्कोन मंदिरों की

शाखाये है





क्या इनके इस बयान को बर्दाश्त किया जाना चाहिए?

ये है  हमारे देश के महान राजनीतिज्ञ...
..

 ये जो की वादे करते है देश को महानता की ओर ले जाने की..खुद तो इन्सान न बन सकते..और देश बनायंगे


और इनकी औकात देखिये..है तो बस ड्राईवर  काम तो ऐसा किया है की इनकी सात पुश्तों को नजर उठा कर चलने की हिम्मत न हो. पर देखिये इनकी और बेशर्म  हमारा  देश  जहां इन लोगो को भी इतनी तुवजू दी जा रही है.की इनके भी साक्षत्कार हो रहे है. ये ज्ञान के पाठ दे रहे है. की एक लड़की को कैसे, किस लिबाज में, कितने बजे तक, बाहर  कैसे, किस के साथ होना चाहिए??..वाह रे ! हमारा समाज ...



फिर ये ढकोसले क्यों??  नही चाहिए हमे ये समारोह ,ये आयोजन.. क्युकी,

न बदला नजरिया समाज का..
फिर ये आयोजन किस काज का,
जंजीरों में जकड़ के रह गयी जिंदगी मेरी,
ये सूरज १८ सदी का हो या आज का..
मेरी पहचान का कोई वजूद नही,
मैं मजबूर तब भी थी,,आज भी मजबूर ही रही..
न बदला नजरिया समाज का.....
मैं वही किसी कोने में दुबकी पड़ी हूँ..
क्युकी फ़िक्र है मुझे अपनी इज्ज़त की, अपने लाज का..
अश्क बहाके छुपाने की आदत सी है..
क्युकी एहसास नही  तुम्हे हमारे दर्द के हिसाब का,
न बदला नजरिया समाज का....

अपनी आवाज़ बुलंद करो, हक माँगा नही छीना जाता है..सम्मान हमे चाहिए और हम वो लेके रहेंगे.
हम नही चाहिये सहानुभूति इस गंदे समाज से....खुद के लिए लड़ो और डेट रहो..
वक़्त बदलेगा जरुर..
तहे दिल से सलाम उन तमाम महिलाओ को जो इस जंग में सहभागी है....

                               HAPPY WOMEN’S DAY…J


बांवरा मन ||| परिकल्पनों के पर लिए, खुद उड़ना सीख जाता है| यदि बांवरा मन को क्षिचित्ज़ भी दीख जाता है, फ़िर खुली आँखों से सपने क्यों...