Thursday, 24 October 2013

                  वो सर्दी की रातें

वाह! क्या रात क्या शमा है,
आकाश काला और गहरा धुआँ है,
समय पल पल कटता जा रहा है,
पर क्यों रुकी है मेरी निगाहें ?
निगाहों में चंचलता की कमी है,
थोरी स्थिरता थोरी नमी है.
पीछे मुरकर ढूँढना चाहती है,
वो बचपन की बाते ,वो सर्दी की राते,
वो कंबल में घुसना और थोरा ठिठुरना ,
फिर माँ के सिराहने में सिर रख के सोना,
दुनिया को भूल माँ के पास होना,
स्थिर निगाहों को याद आती वो बाते,
बातों की मासूमियत और वो यादे .
आज भी ऋतू शीत की है,

पर न वो कंबल न माँ है,न वो बिस्तर ही है..!!! L L

2 comments:

  1. nice1 :)...but thoda explain bhi kr do yr...;)

    ReplyDelete
  2. its good...........wo thandh yad aa gayi....jiske aane ka bhi intjar rahta tha aur jane ka bhi....

    ReplyDelete

बांवरा मन ||| परिकल्पनों के पर लिए, खुद उड़ना सीख जाता है| यदि बांवरा मन को क्षिचित्ज़ भी दीख जाता है, फ़िर खुली आँखों से सपने क्यों...