Friday, 21 June 2013


                पतंग मेरे मन की !!!

इच्छाओ के पर जन्म लेकर खुद ही कट जाते है ,

पर अपने कटने का गम मेरे पास छोड़ जाते है,

गम के सहारे जिंदगी नही कटती है,

हम फिर नई पतंग उड़ाते है ,

डर रहता है, उनके भी कटने का पर,

फिर भी अपनी मन की पतंग उड़ाते है ,

मन की चंचलता क साथ हम भी कुछ दूर चले जाते है,

कभी ठोकर खाते है,कभी गिरते है ,

फिर रोते है , उठ जाते है

खुद से कई सवाल पूछते है .

फिर जवाब खोज नही पाते  है,

फिर भी नई पतंग उड़ाते है .... J J

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बांवरा मन ||| परिकल्पनों के पर लिए, खुद उड़ना सीख जाता है| यदि बांवरा मन को क्षिचित्ज़ भी दीख जाता है, फ़िर खुली आँखों से सपने क्यों...