वो सर्दी की रातें
वाह! क्या रात क्या शमा है,
आकाश काला और गहरा
धुआँ है,
समय पल पल कटता जा
रहा है,
पर क्यों रुकी है
मेरी निगाहें ?
निगाहों में चंचलता
की कमी है,
थोरी स्थिरता थोरी
नमी है.
पीछे मुरकर ढूँढना चाहती
है,
वो बचपन की बाते ,वो
सर्दी की राते,
वो कंबल में घुसना
और थोरा ठिठुरना ,
फिर माँ के सिराहने
में सिर रख के सोना,
दुनिया को भूल माँ
के पास होना,
स्थिर निगाहों को
याद आती वो बाते,
बातों की मासूमियत
और वो यादे .
आज भी ऋतू शीत की
है,
पर न वो कंबल न माँ है,न वो
बिस्तर ही है..!!! L L