Friday, 23 August 2013

               कोई बात नहीं
कुछ कहा था तुमने जो मेरे दिल पे लगा था..
फिर मैंने बरी आसानी से कहा था कोई बात नही...
कई अल्फाज़ छिपे है इसके पीछे .. पर कोई बात नही..
कई जस्बात छिपे है..उस बात के पीछे पर कोई बात नही...
आसान नही होती कहना की कोई बात नही...
पर कोई बात नही..
कितनी क़ुरबानी है..उस बात के पीछे तुम्हे अहसास नही..
पर कोई बात नही..
आदत सि हो गयी है इस बात की मुझे..

कोई बात नही...

8 comments:

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    1. WAHI TO KAHA KOI BAAT NHI!!! .. SOLUTN OF ALL PROBLMS.. :)

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  2. ह्रदय के अंतस्तल से प्रस्फुटित लगते ये शब्द निहित भावों को समझाने में समर्थ है...शब्दों का चयन उत्तम है......'अल्फाज़' शब्द के चयन पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है केवल यही शब्द थोडा कमजोर दीखता है पूरी कविता में....'कोई बात नहीं ' की हर आवृत्ति एक नया स्पंदन उत्पन्न करती है पढने वाले के ह्रदय में.....एक अच्छी कोशिश दीख पड़ती है मनोभावों को शब्दों में उतारने की ....शुभकामनायें.....

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    1. bahut accha laga ye jan kar ki apko mera prayaas pasand aya..
      agli bar ki koshish is se behtar karungi aur shabdo k chayan ka bi dhyan rkhungi...

      meri bhavnao ko samjhne k liye dil se shukriya!!! :)

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  3. ह्रदय के अंतस्तल से प्रस्फुटित लगते ये शब्द निहित भावों को समझाने में समर्थ है...शब्दों का चयन उत्तम है......'अल्फाज़' शब्द के चयन पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है केवल यही शब्द थोडा कमजोर दीखता है पूरी कविता में....'कोई बात नहीं ' की हर आवृत्ति एक नया स्पंदन उत्पन्न करती है पढने वाले के ह्रदय में.....एक अच्छी कोशिश दीख पड़ती है मनोभावों को शब्दों में उतारने की ....शुभकामनायें.....

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  4. keep it up...yar very nice..

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    1. Thanx abhishek to encourage me and always read my blog.. :)

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  5. waw yar sanghmitra.............tum to sach me lekhika ho gayi ho....

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बांवरा मन ||| परिकल्पनों के पर लिए, खुद उड़ना सीख जाता है| यदि बांवरा मन को क्षिचित्ज़ भी दीख जाता है, फ़िर खुली आँखों से सपने क्यों...