..............मैं मेरे अकेलापन और हमारा Laptop....
ये जिन्दगी अकेली
है, या पहेली है.
काटे कटे नही दिन
रात
फिर अकेलापन ही ,
मेरी सहेली है.
अगर उब जाऊ अकेले पन
से तो जाऊ किसके पास
सब रुठ जाते है बस
अकेलापन रह जाता है साथ.
अब जब ये मालूम है मुझे तो क्या कहू अकेले पन को...
उसे ही देती हू कुछ
गीत सुना ..
अकेले में न लगे उसे
सुनासुना...
फिर कई बार अकेले पन
में ये ख्याल भी आता है..
अकेलापन क्यों सताता
है..?
फिर वही अकेलापन हाथ
थाम मुस्काता है..
कहता है अकेले हो चल
laptop खोला जाये बार मज़ा आता है....
हँसते हुए हम भी click करने लग जाते है..
फिर हँसते है, कभी
मंद मंद मुस्काते है..
चुपचाप रहने की आदत
नही फिर भी चुप रह जाते है..
किससे करे गुस्सा ?
किसस करे शिकवा ? ये सोच नही पाते है..
फिर अकेलेपन की तरफ
हम भी हाथ बढ़ाते है..
फिर मैं और अकेलापन laptop देखने लग जाते है..
कभी taste बदलना हो
तो
Diary के पन्ने भी पलटते है..
भूली बिसरी बातों को
फिर याद करने लग जाते है..
कभी रो परू तो
.......
बरे प्यार से मेरे
जुल्फ सहलाता है.. और प्यार से समझाता है..
चल laptop खोला जाये उसमे बार मज़ा आता है..